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मुरझाती रूह को मानो नवजीवन मिलता है फिर दर्द पुराना नई महक लेकर खिलता है होता है मर्द को भी दर्द खुद को पाया है सीता को बचाना है पिंजरे सजाता है हाथों धोना है

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